लालची राजा

यूरोप में यूनान नाम का एक देश है | यूनान मैं पुराने समय मे मिदास नाम का एक राजा राज करता था | राजा मिदास बड़ा ही लालची था | उसकी पुत्री को छोड़कर उसे दूसरी कोई वस्तु संसार में प्यारी थी तो बस सोना ही प्यारा था | वह रात में सोते–सोते भी सोना इकट्ठा करने का स्वप्न देखा करता था |

एक दिन राजा मिदास अपने खजाने में बैठा सोने की ईटे और अशर्फियां गिन रहा था | अचानक वहां एक देवदूत आया उसने राजा से कहा -“मिदास ! तुम बहुत धनी हो |” मिदास ने मुंह लटकाकर उत्तर दिया – “मैं धनी कहां हूं मेरे पास तो यह बहुत थोड़ा सोना है |” देवदूत बोला – “तुम्हें इतने सोने से भी संतोष नहीं है कितना सोना चाहिए तुम्हें |” राजा ने कहा – “मैं तो चाहता हूं कि मैं जिस वस्तु को हाथ से स्पर्श करूं वही सोने की हो जाए |” देवदूत हंसा और बोला – “अच्छी बात है ! कल सवेरे से तुम जिस वस्तु को छूवोगे वह सोने की हो जाएगी |”

उस दिन और रात में राजा मिदास को नींद नहीं आई | वह सुबह उठा उसने एक कुर्सी पर हाथ रखा वह सोने की हो गई | एक मेज को छुआ वह सोने की बन गई | राजा मिदास प्रसंता के मारे उछलने और नाचने लगा वह पागलों की भांति दौड़ता हुआ अपने बगीचे में गया और पेड़ों को छूने लगा फूल, पत्ते, डालिया, गमले छुए सब सोने के हो गए | सब चमाचम चमकने लगा | मिदास के पास सोने का पार नहीं रहा |

दौड़ते-उछलते में मिदास थक गया | उसे अभी तक यह पता ही नहीं लगा था कि उसके कपड़े भी सोने के होकर बहुत भारी हो गए हैं | वह प्यासा था और भूख भी उसे लगी थी | बगीचे से अपने राजमहल लौटकर एक सोने की कुर्सी पर बैठ गया | एक नौकर ने उसके आगे भोजन और पानी लाकर रख दिया | लेकिन जैसे ही मैं दास ने भोजन को हाथ लगाया वह भोजन सोने का बन गया | उसने पानी पीने के लिए गिलास उठाया तो गिलास और पानी सोना हो गया | मिदास के सामने सोने की रोटियां, सोने के चावल, सोने के आलू आदि रखे थे | वह भूखा था -प्यासा था सोना चबाकर उसकी भूख नहीं मिट सकती थी |

मिदास रो पड़ा उसी समय उसकी पुत्री खेलते हुए वहां आई | अपने पिता को रोते हुए देखकर पिता की गोद में चढ़ कर उसके आंसू पहुंचने लगी | मिदास ने पुत्री को अपनी छाती से लगा लिया, लेकिन अब उसकी पुत्री वहां-कहां थी | गोद में तो उसकी पुत्री की सोने की इतनी वजनी मूर्ति थी कि उसे वह गोद में उठाए भी नहीं रख सकता था | बेचारा मिदास सिर पीट-पीट कर रोने लगा | देवता को दया आ गई वो फिर प्रकट हुआ उसे देखते ही मिदास उसके पैरों पर गिर पड़ा और “गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करने लगा अपना वरदान वापस लौटा लीजिए |”

देवता ने पूछा – “मिदास अब तुम्हें सोना नहीं चाहिए | अब बताओ एक गिलास पानी मूल्यवान है या सोना, कपड़ा, रोटी मूल्यवान है या सोना |” मिदास ने हाथ जोड़कर कहा – “मुझे सोना नहीं चाहिए मैं जान गया हूं कि मनुष्य को सोना नहीं चाहिए | सोने के बिना मनुष्य का कोई काम नहीं अटकता | एक गिलास पानी और एक टुकड़े रोटी के बिना मनुष्य का काम नहीं चल सकता | अब सोने का लोभ नहीं करूंगा | देवदूत ने एक कटोरे में जल दिया और कहा – “इसे सब पर छिड़क दो |” मिदास ने वह जल अपनी मेजपर, कुर्सीपर, भोजनपर, पानीपर और बगीचे के पेड़ों पर छिड़क दिया | सब पदार्थ पहले जैसे थे, वैसे ही हो गए |

कहानी की शिक्षा :- दोस्तों, इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है | कि मनुष्य चाहे कितना भी अमीर और कितना भी गरीब हो उसे कभी भी लालच नहीं करना चाहिए | अत्यधिक लालच करने से उसके पास जो होता है वह उसे भी गवा देता है |

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