अगस्त चंद्रमा उत्सव के दिन गांव के चौराहे की ओर जाने वाला रास्ता उन किसान और व्यापारियों से भरा हुआ था जो बाजार में बेचने के लिए अपना सामान ले जा रहे थे। फू नान के माता-पिता गोभी की टोकरियां उठाये हुए बाजार की ओर जा रहे थे। जब फू नान ने भिक्षुक सन्यासी को देखा तो उसने माता पिता से पूछा कि क्या वे वृद्ध संन्यासी के साथ साथ चल सकता था।
फूनान उस बृद्ध को नई पतंग के बारे में बताने लगा जो वे जन्मदिन पर मिले पैसों से खरीदना चाहता था। अचानक उसके रास्ते पर कुछ हंगामा होने लगा। किसान वू का गधा जो नाशपातियों से भरा हुआ ठेला खींच रहा था, भीड़भाड़ वाले रास्ते पर सबको तीतर बितर करता हुआ दौड़ने लगा। भारी बोझ से दवे गधे को ओर तेज दौड़ने के लिए किसान वू उसे पीट रहा था और उस पर चिल्ला रहा था। जब तक फू नान और वृद्ध संन्यासी गांव के बाजार में पहुंचे, किसान वू भी अपने ठेले पर लगी नाशपतियाँ बेच रहा था। सूर्य की गर्मी के कारण सबको प्यास लग रही थी और मीठी रसभरी, नाशपाती खूब बिक रही थी। यद्यपि किसान वू भारी दाम मांग रहा था।
“एक स्वादिष्ट नाशपाती मुझे खाने के लिए दे सकते हो”, सन्यासी ने किसानों वू से पूछा। “फटीचर भिकारी तुम्हें कुछ ना मिलेगा”, किसान वू उन चिल्लाया। “लेकिन तुम्हारे पास तो बहुत सारी नाशपाती हैं , निश्चय ही तुम एक नाशपाती दे सकते हो”वृद्ध ने कहा। यह देख कई लोग इकट्ठे हो गए। किसी ने कहा इतने कंजूस मत बनो वृद्ध को एक नाशपाती दे दो। किसान वू ने गुस्से से अपनी लाठी घुमाई और सन्यासी को बुरा भला कहा।
बालक फूनान ने जब यह देखा तो पतंग खरीदने का सपना जो वह देख रहा था उसको बुला कर उसने अपनी जेब में हाथ डाला। “पतंग में बाद में भी ले सकता हूं” उसने अपने अपने आप से कहा और झटपट किशन वू को अपना सिक्का दे दिए। जन्मदिन के उसके सारे पैसों में सिर्फ एक छोटी नाशपाती ही मिली। सन्यासी कहीं यह देखन न ले कि पतंग पाने की इतनी तीव्र इच्छा उसके मन में थी। फू फोन नीचे धूल भरी जमीन की ओर देखते हुए अपने दोनों हाथों में रखकर नाशपाती उन्हें भेंट की।
झुक कर धन्यवाद करने के बाद वृद्ध ने लोगों से बात की। ” क्योंकि आप में से कई लोगों ने अपना भोजन मेरे साथ बांटा है।”, उन्होंने कहा। “मैं हर एक को एक स्वादिष्ट नाशपाती खिलाऊंगा।” वह गांव के चौराहे में टहलते हुए आगे चले। भीड़ उनके साथ आती रही और अन्य लोगों की तरह उत्सुक किसान वू भी भीड़ के पीछे चलता रहा। सन्यासी चौराहे के दूसरी तरफ रुक गए। उस छोटी नाशपाती को वह झटपट दांतो से काटकर खाने लगे। अंततः उनका एक छोटा काला बीज ही बचा।
पीठ पर लटकी एक थैली से उन्होंने एक फावड़ा निकाला। मिट्टी खोदकर एक गड्ढा बनाया और उसमें वह काला बीज बो दिया। “फूनान”, उन्होंने पुकारा, “केतली में उबला हुआ पानी लेकर आओ” निकट की एक चाय की दुकान से फूनान उबला हुआ पानी ले आया। वृद्ध ने गर्म पानी मिट्टी में डाला, उसी पल एक हरा अंकुर मिट्टी से बाहर निकल आया। मिनटों में अंकुर पेड़ बन गया उसकी डालो पर पत्ती निकल आयीं। तितलियां और मधुमक्खियां आकर्षित होकर वहां आ गई। डालो पर पक्षी आकर गाने लगे।
कोपलें फूल बन गई। फूलों पर छोटी छोटी नाशपतियाँ निकल आई जो तुरंत ही पक कर सुनहरी भूरे रंग की हो गई। बृद्ध ने एक नाशपाती को सूंघा। “मुझे लगता है कि यह पक गई है, और हम इन्हें खा सकते हैं”,उन्होंने कहा। उन्होंने नाशपाती तोड़ी और हर ग्रामीण को एक नाशपाती दी। उन्होंने सबसे बड़ी और पक्की हुई नाशपाती लियांग को दी।
“मीठी रस भरी और स्वादिष्ट”, लोगों ने कहा। सन्यासी के जादू से सब आश्चर्यचकित हो गए।जैसे ही अंतिम नाशपाती तोड़ी गई पेड़ के पत्ते सूख कर पीले हो गए और झड़ने लगे। जो डालें मज़बूत दिखाई दे रही थी थी वह सूख कर विकृत हो गई। “पेड़ ने सारे फल दे दिए है”, वृद्ध ने कहा। अपनी कुल्हाड़ी से पेड़ को उन्होंने काट डाला और उसकी लकड़िया लोगों को जलाने के लिए दे दी।
उन्होंने अपने हाथ झाड़कर धूल साफ़ की और अपने थैले से ढूंढ कर कागज का एक टुकड़ा निकाला जो उन्होंने फू नान को दिया। “जब तुम घर पहुंच जाओगे” उन्होंने फुसफुसाकर कहा। “इसको एक धागे से बांध देना और फिर देखना क्या होता है। फिर हाथ हिलाकर उन्होंने सबको अलविदा किया और पहाड़ों की ओर जाने वाले रास्ते पर चल दिए।
सब लोग इकट्ठे होकर उस जादू के विषय में बात करने लगे जो उन्होंने देखा था। फूनान ने कागज का टुकड़ा अपनी जेब में रख लिया और अपने माता-पिता को ढूंढने निकल पड़ा। गांव के चौराहे से आई क्रोध भरी दहाड़ सुनकर फू नान रुक गया। लोगों ने किसानों को उस जगह खड़े देखा जहां उसका ठेला था। किसान वू की नाशपाती और उसका ठेला गायब हो गए थे। सिर्फ गधा और ठेले के दो पहिए वहां थे। तभी फू नान सब समझ गया। वृद्ध संन्यासी ने जादू से किसान वू की सारी नाशपाती गायब कर दी थी। पहिए को छोड़ ठेले की अन्य भाग पेड़ बनाने में उन्होंने उपयोग कर लिए थे।
किसान वू भी समझ गया कि क्या हुआ था। चौराहे में इकट्ठे लोगों को इधर-उधर धकेलते हुए वे सन्यासी के पीछे भागा और चिल्लाया “उस बूढ़े भिखारी को पकड़ो,उसने मेरी नाशपातीया चुरा ली।” लेकिन पहाड़ों की ओर जाते रास्ते पर सन्यासी बहुत दूर निकल गए थे। किसान वू के पीछे खड़े ग्रामीण इतनी जोर से हंस पड़े कि उनके लिए खड़े रहना भी कठिन हो गया। उस दिन से आज भी किसान वू के नाशपाती खोने की कहानी सुनाकर गांव के लोग अपने बच्चों को आज भी सचेत करते हैं। उस मूर्ख इंसान की तरह कंजूसी ना करना अन्यथा अंत में जग हंसाई का कारण बन जाओगे।
उस दिन से टोकरी बनाने वाले के बेटे को आकाश में उड़ते हुए पक्षी देखना अच्छा लगता है लेकिन फिर उसने कभी कोई पक्षी नहीं पकड़ा। लियांग का कुआं मीठे स्वच्छ पानी से हमेशा भरा रहता है, सूखे के दिनों में भी। और जो कागज का टुकड़ा वृद्ध ने फू नान को दिया था वह एक विशाल शानदार पतंग बन गया।
उत्सव पर जब पहली बार उसने पतंग को शाम के समय उड़ाया तभी वो जान गया था कि जितनी भी पतंगे उसने अब तक ली थी ये पतंग सबसे अधिक सुंदर और मजबूत थी। पतंग के माझे को पकड़े हुए और हवा में पतंग की पूछ के फड़फड़ाने की आवाज सुनकर फू नान को लगा की वृद्ध संन्यासी उसके निकट ही थे। एक दिन उसने सोचा गांव त्याग कर वे वृद्ध संन्यासी का अनुसरण करते हुए पहाड़ों में जाने योग्य हो जाएगा।
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