कंजूस चाची की कहानी

कंजूस चाची

चाची बहुत ही समझदार महिला थी। पूरे घर का संचालन चाची ही करती थी। घर-खर्च का पूरा हिसाब चाची ही रखती थी। लेकिन चाची को सब कंजूस चाची कहा करते।पैसे खर्च करने में बहुत कंजूसाई करती।

चप्पल टूट गई तो कील ठोक कर चलाती रहती। घर खर्च में भी हमेशा ख्याल रखती कि पैसे कहाँ और कैसे बचें।
एक दिन भतीजे संजय ने पूछ ही लिया -“चाची! सब आपको कँजूस कहते हैं, आपको बुरा नहीं लगता?”

चाची बोली-” नहीं। बुरा क्यों लगेगा? मैं हूँ ही कँजूस।  लेकिन क्यों हूँ यह कभी समय आया तो मालूम होगा।”
एक दिन सास की तबियत अचानक बिगड़ गई। उन्हें अस्पताल ले गए।

डाक्टर ने कहा-” हृदय रोग है। आपरेशन करना होगा। हम सब टेस्ट और आपरेशन की तैयारी करते हैं। आपलोग काउण्टर पर पैसे जमा करवा दीजिए।”

बात हो ही रही थी कि चाची का फोन संजय के पास आया और पूछा-” डाक्टर ने क्या कहा?”
संजय ने कहा-“आपरेशन करना होगा। अभी तत्काल पैसे जमा करवाने होंगे। पापा पैसों के इंतजाम के लिए निकल रहे हैं।”
चाची ने कहा-” उन्हें वहीं रोको, मैं आ रही हूँ।”
कुछ ही देर में चाची वहाँ अस्पताल पहुँच गई और आपने पर्स से नोटों का बंडल निकाल कर पूछा-” बतलाओ कितने पैसे भरने हैं?”

इतने पैसे देखकर सब आश्चर्यचकित हो गए।

चाची ने सँजय को बुलाकर कहा-“बेटा! इन्हीं दिनों के लिए मैं कंजूसाई करती थी। जीवन है। न जाने कब जरुरत पड़ जाए। तुम जिसे कँजूसाई कहते हो मैं उसे बचत कहती हूँ।”

चाची ने पुनः कहा-” बेटा! जिसने बचत करना सीख लिया, उसे मुसीबत में हाथ नहीं फैलाने पड़ते।”

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