एक गरीब, एक दिन एक जैन के पास, अपनी जमीन बेचने गया। बोला, जैन साहब मेरी 2 एकड़ जमीन आप रख लो।
जैन बोला, क्या कीमत है? गरीब बोला, 50 हजार रुपये। जैन साहब, थोड़ी देर सोच के …, वो ही खेत जिसमे ट्यूबवेल लगा है। गरीब, जी। आप, मुझे 50 हजार से कुछ कम भी देगे, तो जमीन, आपको दे दूँगा। जैन ने आँखे बंद की 5 मिनिट सोच के… नहीं, मैं उसकी कीमत 2 लाख रुपये दूँगा गरीब….पर मैं 50 हजार माँग रहाँ हूँ आप 2 लाख क्यो देना चाहते हैं???
जैन बोला, तुम जमीन क्यों बेच रहे हो ? गरीब बोला, बेटी की शादी करना है। बच्चो की पढ़ाई की फीस जमा करना है। बहुत कर्ज है। मजबूरी है। इसीलिए मज़बूरी में बेचना है। पर आप 2 लाख क्यों दे रहे हैं ?
जैन बोला, मुझे जमीन खरीदना है। किसी की मजबूरी नही खरीदना, अगर आपकी जमीन की कीमत मुझें मालूम है। तो मुझें, आपके कर्ज, आपकीं जवाबदेही और मजबूरी का फायदा नही उठाना हैं। मेरा “जिनेश्वर” कभी खुश नहीं होगा। ऐसी जमीन या कोई भी साधन, जो किसी की मजबूरियों को देख के खरीदे। वो घर और जिंदगी में, सुख नही देते, आने वाली पीढ़ी मिट जाती है।
हे, मेरे मित्र, “तुम खुशी खुशी, अपनी बेटी की शादी की तैयारी करो। 50 हजार की पूरा गांव मिलकर व्यवस्था कर लेगा और तेरी जमीन भी तेरी रहेगी। मेरे, वीरप्रभु ने भी, अपने प्रवचन में यही कहा है, जीयो और जीने दो। गरीब हाथ जोड़कर, आखों में नीर भरी खुशी-खुशी दुआयें देता चला गया।
क्या ऐसा जीवन, हम किसी का बना सकते है। बस किसी की मजबूरी, न खरीदे। किसी के दर्द, मजबूरी को समझकर, सहयोग करना ही सच्चा तीर्थ है। …एक यज्ञ है। …सच्चा कर्म और बन्दगी है…
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