एक अधूरा प्यार

वो दिन अभी भी याद आता है जब पापा से बहुत जिद करने के बाद 5 रूपए मांगे थे क्यूंकि क्लास में तुमने कहा था तुम्हे गोलगप्पे बहुत पसंद है और मुझे तुम अच्छी लगती थीं तुम्हारा और मेरा घर आजू बाजू था और रास्ते में ‘कैलाश गोलगप्पे वाला’ अपना ठेला लगाता था घर जाने के दो रास्ते थे तुम दुसरे रास्ते जाती और मैं गोलगप्पे की दुकान वाले रास्ते उस दिन में बहुत खुश था नेवी ब्लू रंग की स्कूल की पैंट की जेब में 1 रुपये के पांच सिक्के खन खन करके खनक रहे थे और मैं खुद को बिल गेट्स समझ रहा था शायद पांच रुपये मुझे पहली बार मिले थे और तुझे गोलगप्पे खिलाकर सरप्राइज भी तो देना था।

स्कूल की छुट्टी होने के बाद बड़ी हिम्मत जुटा कर मैने तुमसे कहा ज्योति, आज मेरे साथ मेरे रास्ते घर चलो ना? हांलाकि हम दोस्त थे पर इतने भी अच्छे नहीं कि तुम मुझ पर ट्रस्ट कर लेती फिर तुमने गुस्से से मुझे कहा कि ’मैं नी आरी’ फिर मैने तुमसे बोला की ’प्लीज चलो ना तुम्हे कुछ सरप्राइज देना है’ ये सुन के तूम और भड़क गयी और जाने लगी क्यूंकि क्लास में मेरी इमेज बैकैत और लोफर लड़कों की थी।

मैं जा ही रहा था तो तूमने आकर बोला की – रुको मैं आउंगी पर तुम मुझसे 4 फीट दूर रहना मैंने मुस्कुराते हुए कहा ठीक है, हम चलने लगे और मैं मन ही मन प्रफुल्लित हुए जा रहा ये सोचकर की तुम्हे तुम्हारी मनपसंद चीज़ खिलाऊंगा और शायद इससे तुम्हारे दिल के सागर में मेरे लिए प्रेम की मछली गोते लगा ले खैर गोलगप्पे की दुकान आई मैं रुक गया तुमने जिज्ञासावस पूछा रुके क्यूँ?

मैं– अरे! ज्योति तुम गोलगप्पे खाओगी ना इसलिए।

ज्योति – अरे वाह!!!!!! जरुर खाऊँगी।

तेरी आँखों में चमक थी। और मेरी आत्मा को तृप्ति और अतुलनीय प्रसन्नता हो रही थी। तब 1 रुपये के 3 गोलगप्पे आते थे।

मैने गोलगप्पे वाले से कहा – कैलाश भैय्या ज़रा पांच के गोलगप्पे खिलवा दो।

कैलाश भैय्या– जी बाबू जी। (मुझे बुलाकर कान में) गरलफ्रंड हय का?

मैं(हँसते हुए)– ना ना भैया।आप भी

कैलाश भैय्या ने गोलगप्पे में पानी डालकर तुम्हें पकड़ाया ही था कि तू जोर से चिल्लाई- रवि…रवि

इतने में एक स्मार्ट सा लौंडा (शायद दुसरे स्कूल का) जिसके सामने मैं वो था जैसा शक्कर के सामने गुड लाल रंग की करिज्मा से हमारी तरफ आया और बाइक रोक के बोला- ज्योति मैं तुम्हारे स्कूल से ही आ रहा हूँ। चलो ‘कहो ना प्यार है के दो टिकट करवाए हैं जल्दी बैठो’

‘हाय ऋतिक रोशन!!!!’ कहते हुए तूम उछल पड़ी और गोलगप्पा जमीन में फेंकते हुए मुझसे बोली-सॉरी अंकित आज किसी के साथ मूवी जाना है, कभी और। और मैं समझ गया कि ये “किसी” कौन होगा।

ये कहते हुए तूम बाइक पर बैठ गई और उस लौंडे से चिपक गई, उसके सीने में अपने दोनों हाथ बांधे हुए। तूम आँखों से ओझल हुए जा रही थी और मुझे बस तुम्हारी काली जुल्फें नज़र आ रही थी। उसी को देखता मेरे नेत्रों में कालिमा छा रही थी।

कैलाश भैय्या की भी आँखे भर आईं थी और मेरे दो नैना नीर बहा रहे थे।

कैलाश भैय्या– छोड़ो ना बाबू जी। ई लड़कियां होती ही ऐसी हैं। अईसा थोअड़े होअत है कि किसी के दिल को शीशे की तरह तोड़ दो।

ये कहकर उन्होंने कपड़ा उठाया जिससे वो पसीना पोछा करते थे और अपने आंसुओं को पोछने लगे। मैं भी रो पड़ा। अभी 14 गोलगप्पे बचे थे और कैलाश भैय्या जिद कर रहे थे खाने की।

एक गोलगप्पा खाते खाते दिल फ्लैशबैक में जा रहा था।

दूसरा गोलगप्पा– तुम सातवीं कक्षा में क्लास में नई नई आई थी आँखों में गाढ़ा काजल लगाकर और मेरी आगे वाली सीट में बैठ गई थी

तीसरा गोलगप्पा– तूम सातवीं कक्षा के एनुअल फंक्शन में ‘अंखियों के झरोखे से’ गाना गाया था।

चौथा गोलगप्पा– उसी दिन की रात मेरे आंखों में तुम्हारी छवि बस गई थी।

पांचवा गोलगप्पा– आठवी कक्षा के पहले दिन मैडम ने तुम्हें मेरे साथ बिठा दिया था।

छठा गोलगप्पा– मैं बहुत खुश था। तुम्हारे बालों से हेड एंड शोल्डर्स शैम्पू की खुशबू आती और मैं रोज़ उस खुशबू में खो जाता। यही कारण था मैं आठवी की अर्धवार्षिक परीक्षा में अंडा लाया था। और मैडम ने मुझे हडकाया था।

सातवाँ गोलगप्पा– मैं फेल हो गया था तो मैडम ने तुम्हें होशियार लड़की के साथ बिठा दिया था।

आँठवा गोलगप्पा – मैं उदास हो गया था। और मैंने 3 दिन तक खाना नहीं खाया था।

नौवा गोलगप्पा– मैं रोज़ छुट्टी के बाद तुम्हारे घर तक तुम्हारा पीछा किया करता था।

दसवां गोलगप्पा – मैं रोज़ सुबह और शाम तुम्हारे घर के चक्कर काटता था इस उम्मीद की शायद तुम घर के बाहर एक झलक मात्र के लिए दिख जाए।

ग्यारहवां गोलगप्पा – तुमने मुझे एक दिन डांट दिया था कि छुट्टी के बाद मेरा पीछा मत किया करो। और उस दिन मुझे बहुत बुरा लगा था, तबसे मैं दुसरे रास्ते से घर जाने लगा था।

बारहवां गोलगप्पा – हम नवीं कक्षा में पहुँच गए थे। दिवाली थी। कहो ना प्यार है के गाने रिलीज़ हो गए थे। मैं क्लास में बैठा आंखों में तेरी तस्वीर लिए ‘क्यूँ चलती है पवन गुनगुनाते रहता था’

तेरहवां गोलगप्पा – मैंने दिवाली के बाद तुझसे पूछा था हिम्मत जुटाकर कि क्या तुम्हारा कोई बॉय फ्रेंड है। तुमने कहा था- नहीं मैं ऐसी लड़की नहीं हूँ।

उस रात मैं बहुत खुश था ये सोचकर की तूम कभी तो जानोगे कि तुम्हारे लिए मैं भले ही कुछ भी हूँ मगर मेरे लिए तूम वो हो जिसके लिए मैं सांस लेता हूँ।

चौदहवां गोलगप्पा – आज कहो ना पयार है रिलीज हुई है और मैं पापा से पांच रुपये मांगने की जिद कर रहा हूँ। यह भी प्लान बना रहा हूँ कि तुमसे आज दिल की बात कह दूंगा।

पन्द्रहवां और आखिरी गोलगप्पा – मेरे दिल टूट चूका था और मुहं में गोलगप्पे का पानी था और चेहरे में अश्कों का मंज़र था।

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