इंतज़ार

आ गए राकेश आंसू पोछते हुए उदय काका ने कहा। हाँ काका अम्मा कैसी है अब ?बहुत ही आराम से सारी चिंताओं से मुक्त ,दुनिया के मोहमाया से बहुत दूर ऐसी निद्रा में लीन जहां से उसे अब कोई भी नहीं उठा सकता कहते हुए तेजी से आगे बढ़ गए। राकेश पत्थर बन खड़ा रहा माँ की बातें गूंजने लगी थी मन में। दो महीने से माँ बुला रही थी पर काम की व्यस्तता में राकेश को समय ही नहीं था की वो मिलने आता परसों ही माँ ने कहा था, बेटा समय निकाल के आजा तेरी बहुत याद आ रही है इस उम्र में जिंदगी का क्या भरोषा की कब धोखा दे जाय कितना इन्तजार करवाएगा अपनी माँ से। दो साल हो गए थे माँ से मिले पर दो महीने से वो लगातार बुला रही थी ,काश मैं समझता आ जाता मिलने समय तो किसी के पास नहीं पर समय निकल ही जाता अगर इच्छा होती। चली गयी मेरा इन्तजार करते करते।
अंतिम इच्छा भी न पूरी कर पाया। कितने मुश्किलों से पाला था अकेले मुझे ,मुझको लेकर कितने शौक थे उसके ,पर मैं अपने बारे में ही सोचता रहा आगे बढ़ने और तरक्की करने के बीच कैसे माँ को भूल गया। उन वादों को भूल गया जो मैंने कभी माँ से किये थे ,मैं इतना स्वार्थी कैसे हो गया दुनिया के चकाचौँध में माँ का प्यार भूल गया। किस मुँह से उस माँ के पार्थिव शरीर के पास जाऊं जिसे मेरी वजह से कभी न ख़त्म होने वाली इन्तजार के साथ इस दुनिया से जाना पड़ा। सोच ही रहा था की वृंदा मौसी ने आवाज़ दी बेटा चलो माँ के अंतिम संस्कार का समय हो रहा है। अब पछताने से क्या होगा ,सुना है न ” अब पछताए होत क्या ?जब चिड़िया चुग गयी खेत ” कुछ भी कर लो अब माँ तो तरसती ही चली गयी तुम्हारी।

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